श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” केर जन्म १९११ ई. मे अपन मामागाम सतलखामे भेलन्हि, जे हुनकर गाम तरौनीक समीपहिमे अछि।हिनकर पिता गोकुल मिश्र छलाह।  यात्रीजी मात्र छ वर्षक छलाह जखन हुनकर माए हुनका छोड़ि प्रयाण कए गेलीह।  यात्री जी अपन गामक संस्कृत पाठशालामे पढ़ए लगलाह, फेर ओऽ पढ़बाक लेल वाराणसी आऽ कलकत्ता सेहो गेलाह आऽ संस्कृतमे “साहित्य आचार्य” केर उपाधि प्राप्त कएलन्हि। तकर बाद ओऽ कोलम्बो लग कलनिआ स्थान गेलाह पाली आऽ बुद्ध धर्मक अध्ययनक लेल। ओतए ओऽ बुद्धधर्ममे दीक्षित भए गेलाह आऽ हुनकर नाम पड़लन्हि नागार्जुन। यात्री जी मार्क्सवादसँ प्रभावित छलाह। यात्री जी जखन २० वर्षक छलाह तखन १२ वर्षक कान्यासँ हिनकर विवाह भेल।  १९२९ ई. क अन्तिम मासमे मे मैथिली भाषामे पद्य लिखब शुरू कएलन्हि यात्री जी।  १९३५ ई.सँ हिन्दी मे सेहो लिखए लगलाह। स्वामी सहजानन्द सरस्वती आऽ राहुल सांकृत्यायनक संग ओऽ किसान आन्दोलन मे संलग्न रहलाह आऽ १९३९ सँ १९४१ धरि एहि क्रममे विभिन्न जेलक यात्रा कएलन्हि। हुनकर बहुत रास रचना जे महात्मा गाँधीक मृत्युक बाद लिखल गेल छल, प्रतिबन्धित कए देल गेल। भारत-चीन युद्धमे कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चीनकेँ देल समर्थनक बाद यात्री जीक मतभेद कम्युनिस्ट पार्टीसँ भए गेलन्हि। जे.पी. अन्न्दोलन मे भाग लेबाक कारण आपात्काल मे हिनका जेल मे ठूसि देल गेल। यात्री जी हिन्दी मे बाल साहित्य सेहो लिखलन्हि। हिन्दी आऽ मैथिलीक अतिरिक्त बांग्ला आऽ संस्कृतमे सेहो हिनकर लेखन आएल। मैथिलीक दोसर साहित्य अकादमी पुरस्कार १९६९ ई. मे यात्रीजीकेँ हुनकर कविता संग्रह “पत्रहीन नग्न गाछ”पर भेटलन्हि। यात्रीजी दू टा मैथिली कविता लिखलन्हि- “बूढ़ वर” आऽ विलाप आऽ एकरा पाम्फलेट रूपमे छपबाए ट्रेनक यात्री लोकनिकेँ बेचलन्हि। जीविकाक ताकिमे सौँसे भारत दुनू प्राणी घुमलाह।   १९९४ ई. मे हिनका साहित्य अकादमीक फेलो नियुक्त कएल गेल।
प्रकाशित कृति: चित्रा, पत्रहीन नग्न गाछ (मैथिली कविता-संग्रह); पारो, बलचनमा, नवतुरिया (मैथिली उपन्यास); युगधारा, सतरंगे पंखोंवाली, प्यासी पथराई आंखें, खिचड़ी विप्लव देखा हमने, तुमने कहा था, हजार हजार बाहो वाली, पुरानी जूतियो का कोरस, रत्नगर्भा, ऐसे भी हम क्या ! ऐसे भी तुम क्या ! (हिन्दी कविता-संग्रह); रतिनाथ की चाची, बलचनमा, नई पौध, बाबा बटेसरनाथ, वरुण के बेटे, दुखमोचन, कुम्भीपाक, अभिनन्दन, उग्रतारा, इमरतिया (हिन्दी उपन्यास); आसमान में चन्दा तैरे (कहानी संग्रह); भस्मांकुर (हिन्दी खण्ड काव्य); अन्नहीनम् क्रियाहीनम् (निबन्ध-संग्रह); गीत गोविन्द; मेघदूत; विद्यापति के गीत, विद्यापति की कहानियां (अनुवाद) ।
हुनकर देहावसान सन १९९८ ई. में भेलनि।

कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप
हम टा संतति, से हुनक पाप
ई जानि ह्वैन्हि जनु मनस्ताप
अनको बिसरक थिक हमर नाम
माँ मिथिले, ई अंतिम प्रणाम!

“कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप” ई कहि यात्रीजी अपन पिताक प्रति सभ उद्गार बाहर कए दैत छथि।

 
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