"कवि कोकिल विद्यापति"  केर जन्म मिथिला के बिस्फी गांव में सन १३५२-ई. में भेल छल !  "कवि कोकिल विद्यापति"  के पूरा नाम "विद्यापति ठाकुर छल।   हिनकर परवर्ती सभ आइ-काल्हि सौराठ गाममे रहैत छथि। माता "हाँसिनी देवी" और पिता "श्री गणपति ठाकुर" , कपिलेश्वर महादेव के अराधना कअ एहन पुत्र रत्न प्राप्त केने छलथि। पितामह जयदत्त ठाकुर एवं पिता गणपति ठाकुर राजपण्डित छलाह ! कहल जाइत अछि कि स्वयं भोले नाथ , कवि विद्यापति के नौकर (उगना नाम ) बनि क चाकरी केने छलथि। अंत समय गंगा लाभ लेल बनारस चलि गेलाह !
राजा शिवसिंह,विद्यापति के बालसखा और मित्र छलथि , जाहि स हुनकर शासन-काल के लगभग चारि साल के समय महाकवि के जीवन के सबसअ सुखद समय छल । देव सिंहक आदेश सँ १४०० ई.क लगाति मे ई “भू-परिक्रमा लिखलन्हि। १४०२-०४ क बीच कीर्तिलताक रचना कीर्ति सिंहक राज्यकाल मे कएलन्हि। १४०९-१४१५ ई.क बीच कीर्तिपताकाक रचना। पूर्वार्ध १४०९ क लगातिमे मे - हरि केलि अर्जुन सिंहक कीर्तिगाथासँ सम्बन्धित अछि आ उत्तरार्ध १४१५ क लगातिमे शिवसिंहक युद्ध आ तिरोधानसँ सम्बद्ध अछि। विद्यापति मैथिली के अलावा संस्कृत और अवहटट्ठ (संस्कृत प्राकृत मिश्रित मैथिली) में सेहो लिखलाह !चाहे उपनयन संस्कार हों या विवाह , शिव स्तुति और भगवती स्तुति तअ मिथिला के हर घर में खूब भाव भक्ति सअ गायल जाइत अछि । माँ भैरवी के रूप के वर्णन वाला गीत "जय जय भैरवी " तअ हरेक मैथिल के पसंदीदा भजन अछि !आधुनिक मैथिली साहित्यके लेखन आ विस्तारमें हुनकर बहुत बड्का योगदान रहल अछि। हुनकर देहावसान कार्तिक धवल त्रयोदसी के सन १४४८ ई. में भेलनि।

हिनकर रचनामे एक बेर जगज्जननी सीताक चरचा एहि रूपमे आएल अछिI
इन्द्रस्येव शची समुज्जवलगुणा गौरीव गौरीपतेः कामस्येव रतिः स्वभावमधुरा सीतेव रामस्य या। विष्णोः श्रीरिव पद्मसिंहनृपतेरेषा परा प्रेयसी विश्वख्यातनया द्विजेन्द्रतनया जागर्ति भूमण्डले॥9॥

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